इस वर्ष मार्च और अप्रैल में महीने से ही गर्मी की शुरुआत हो गई थी. तेज धूप के साथ जमकर गर्म हवाएं चलीं. इससे गेहूं की फसल प्रभावित हुई
खराब मौसम की वजह से इस साल देश में गेहूं की फसल के उत्पादन में 2.75 मिलियन टन की कमी आई है. खासकर उत्पादन में कमी उन क्षेत्रों में सबसे ज्यादा आई है, जहां गेहूं की खेती होती है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में ये कमी सबसे ज्यादा दर्ज की गई है. कृषि वर्ष 2021-2022 के लिए चौथे अनुमान के अनुसार, गेहूं का उत्पादन 106.84 मिलियन टन होगा, जो पिछले वर्ष के लिए अनुमानित 109.59 मिलियन टन से 2.75 मिलियन टन (2.5%) कम है. विशेषज्ञों ने इस साल की गिरावट के लिए पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में मार्च की शुरुआत में गर्मी को जिम्मेदार ठहराया है. खास बात यह है कि केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने मंगलवार को लोकसभा में इस बात की जानकारी दी. उन्होंने पंजाब कांग्रेस सांसद रवनीत सिंह बिट्टू के एक सवाल के जवाब में लिखित बयान दिया. मार्च और अप्रैल 2022 में उमस भरे मौसम से फसलों को हुए नुकसान का जिक्र पहले भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) की सबसे हालिया रिपोर्ट में किया गया था.
इससे पैदावार में 25 प्रतिशत तक की कमी आई
दरअसल, इस वर्ष मार्च और अप्रैल में महीने से ही गर्मी की शुरुआत हो गई थी. तेज धूप के साथ जमकर गर्म हवाएं चलीं. ऐसे में समय से पहले ही गेहूं की फसल लू के कारण पक गए. इससे प्रमुख उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब में गेहूं की उपज प्रभावित हुई. खासकर पंजाब के कई जिलों में गर्म हवा और गर्मी की वजह से गेहूं के दानों का पीलापन और सिकुड़न और जबरन परिपक्वता हुई. इससे पैदावार में 25 प्रतिशत तक की कमी आई.
हम एक जलवायु आपातकाल के बीच में हैं
कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा ने कहा कि हम एक जलवायु आपातकाल के बीच में हैं. इसे जल्द से जल्द संबोधित किया जाना चाहिए. वैश्विक जलवायु परिवर्तन पर अधिक चर्चा होनी चाहिए, न कि केवल तब जब यह गेहूं के उत्पादन को प्रभावित करता है. कृषि मंत्री ने यह भी कहा कि आईसीएआर देश में बीमारी की स्थिति पर कड़ी नजर रख रहा है. साथ ही गेहूं सहित विभिन्न फसलों के लिए विभिन्न प्रकार के बीज विकसित कर रहा है, जो जलवायु तनाव के प्रतिरोधी है.