शीतलहर और पाले से फसलों को बचाने के लिए अभी से करें तैयारी, वरना हो सकता है भारी नुकसान

02/11/2022 10:44:12 a.m.

शीतलहर से फसलों व फलदार पेड़ों की उत्पादकता पर विपरित प्रभाव पड़ता है. पाले के प्रभाव से पौधों की पत्तियां और फूल झुलसने लगते हैं

सर्दी के मौसम की शुरुआत हो गई है और आने वाले दिनों में ठंड का प्रकोप और बढने वाला है. इस वर्ष मौसम वैज्ञानिकों ने लंबे समय तक ठंड का असर रहने की संभावना जताई है. खास कर उत्तर भारत में सर्दी का प्रकोप कुछ अधिक ही रहता है. साथ ही ठंड का असर इंसान और जानवरों के साथ- साथ फसलों पर भी देखने को मिल सकता है. कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि अधिक ठंड से फसल के उत्पादन पर विपरित प्रभाव पड़ता है. परिणामस्वरूप कम उत्पादन प्राप्त होता है. ऐसे में आज हम देश के वरिष्ठ फल वैज्ञानिक डॉक्टर एसके सिंह से सर्दी के मौसम में फसलों के बचाव करने की तरीके के बारे में जानते हैं.

डॉक्टर एसके सिंह के मुताबिक, सर्दी के मौसम में फसलों को विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है. जब वायुमंडल का तापमान शून्य डिग्री सेल्सियस या फिर इससे नीचे चला जाता है तो हवा का प्रवाह बंद हो जाता है. इसकी वजह से पौधों की कोशिकाओं के अंदर और ऊपर मौजूद पानी जम जाता है और ठोस बर्फ की पतली परत बन जाती है. इसे ही पाला पड़ना कहते हैं. पाला पड़ने से पौधों की कोशिकाओं की दीवारें क्षतिग्रस्त हो जाती हैं और कोशिका छिद्र (स्टोमेटा) नष्ट हो जाते हैं. पाला पड़ने की वजह से कार्बन डाइऑक्साइड, ऑक्सीजन और वाष्प की विनियम प्रक्रिया भी बाधित होती है. इससे फसलों को काफी नुकसान पहुंचता है.

आने वाले फल या फूल झड़ सकते हैं

शीतलहर से फसलों व फलदार पेड़ों की उत्पादकता पर विपरित प्रभाव पड़ता है. फसलों में फूल और फल आने या उनके विकसित होते समय पाला पड़ने की सबसे ज्यादा संभावनाएं रहती हैं. पाले के प्रभाव से पौधों की पत्तियां और फूल झुलसने लगते हैं. इसकी वजह से फसल पर असर पड़ता है. वहीं, कुछ फसलें बहुत ज्यादा तापमान या पाला झेल नहीं पाती हैं, जिससे उनके खराब होने का खतरा बना रहता है. पाला पड़ने के दौरान अगर फसल की देखभाल नहीं की जाए तो उस पर आने वाले फल या फूल झड़ सकते हैं. इसकी वजह से पत्तियों का रंग भूरा रंग जैसा दिखता है. अगर शीतलहर हवा के रूप में चलती रहे तो उससे कम या बिलकुल ही नुकसान नहीं होता है. लेकिन हवा रूक जाए तो पाला पड़ता है जो फसलों के लिए ज्यादा नुकसानदायक होता है.

फूलों के गिरने से पैदावार में कमी हो जाती है

पाले की वजह से अधिकतर पौधों के फूलों के गिरने से पैदावार में कमी हो जाती है. पत्ते, टहनियां और तने के नष्ट होने से पौधों को अधिक बीमारियां लगने का खतरा रहता है. सब्जी, पपीता, आम और अमरूद पर पाले का प्रभाव अधिक पड़ता है. टमाटर, मिर्च, बैंगन, पपीता, मटर, चना, अलसी, सरसों, जीरा, धनिया, सौंफ आदि फसलों पर पाला पड़ने के दिन में ज्यादा नुकसान की आशंका रहती है. जबकि अरहर, गन्ना, गेहूं व जौ पर पाले का असर कम दिखाई देता है. जाड़े में उगाई जाने वाले पौधे 2 डिग्री सेंटीग्रेट तक का तापमान सहन कर सकते हैं. इससे कम तापमान होने पर पौधे की बाहर और अंदर की कोशिकाओं में बर्फ जम जाती है.

कैसे करें उपाय

नर्सरी के पौधों एवं सब्जी वाली फसलों को लो कास्ट पाली टनल में उगाना अच्छा रहता है. या फिर ठंड से बचाव के लिए पॉलिथीन अथवा पुवाल से ढक देना चाहिए. वायुरोधी बोरी की टाटियां को हवा आने वाली दिशा की तरफ से बांधकर क्यारियों के किनारों पर लगाने से पाले और शीतलहर से फसलों को बचाया जा सकता है. साथ ही पाला पड़ने की संभावना को देखते हुए जरूरत के हिसाब से खेत में हलकी हलकी सिंचाई करते रहना चाहिए. इससे मिट्टी का तापमान कम नहीं होता है. सरसों, गेहूं, चावल, आलू, मटर जैसी फसलों को पाले से बचाने के लिए सल्फर(गंधक) का छिडक़ाव करने से रासायनिक सक्रियता बढ़ जाती है और पाले से बचाव के अलावा पौधे को सल्फर तत्व भी मिल जाता है. सल्फर पौधों में रोगरोधिता बढ़ाने में और फसल को जल्दी पकाने में भी सहायक होता है.

ऐसा करने से मिट्टी का तापमान कम हो जाता है

वहीं, दीर्घकालीन उपाय के रूप में फसलों को बचाने के लिए खेत की मेड़ों पर वायु अवरोधक पेड़ जैसे शीशम, बबूल और जामुन आदि लगा देने चाहिए, जिससे पाले और शीतलहर से फसल का बचाव होता है. थोयोयूरिया 1 ग्राम प्रति 2 लीटर पानी में घोलकर छिडक़ाव कर सकते हैं. साथ ही 15 दिनों के बाद छिडक़ाव को दोहराना चाहिए. चूंकि सल्फर (गंधक) से पौधे में गर्मी बनती है. इसलिए घुलनशील सल्फर 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर फसल पर छिडक़ाव करने से पाले के असर को कम किया जा सकता है. पाला पड़ने की संभावना वाले दिनों में मिट्टी की गुड़ाई या जुताई नहीं करनी चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से मिट्टी का तापमान कम हो जाता है.