सात राज्यों में चार अत्यंत खतरनाक रसायनों का अंधाधुंध इस्तेमाल, किसानों का स्वास्थ्य दांव पर : रिपोर्ट

25/07/2022 10:06:59 a.m.

देश के कृषि प्रमुख राज्यों में चार अत्यधिक खतरनाक कीटनाशकों (हाईली हजार्ड्स पेस्टीसाइड ) की श्रेणी में आने वाले प्रतिबंधित रसायनों का बेरोकटोक इस्तेमाल जारी है। इसके चलते कृषि उपज और पर्यावरण प्रदूषण की सुरक्षा खतरे में है।

यह बात एक गैर लाभकारी संस्था पेस्टीसाइड एक्शन नेटवर्क इंडिया (पैन इंडिया) की हालिया रिपोर्ट में सामने आई है। रिपोर्ट का नाम - हाईली हजार्ड्स पेस्टीसाइड सीरीज स्टेट ऑफ क्लोपाइरिफोस, फाइप्रोनिल, एट्राजिन एंड पैराक्वाट डाईक्लोराइड इन इंडिया है।

खेती-किसानी के लिए रसायनों का इस्तेमाल एक दायरे और सूझ-बूझ के साथ करने के लिए भारत के कीटनाशक नियामक केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड और पंजीकरण समिति ने विशिष्ट मंजूरी दी है लेकिन इस अध्ययन में पाया गया कि राज्य के कृषि विभागों और उद्योगों ने अधिक फसलों को हासिल करने के लिए चार रसायनों (क्लोपाइरिफोस, फाइप्रोनिल, एट्राजिन एंड पैराक्वाट डाईक्लोराइड)  का अधिक इस्तेमाल करने के लिए सिफारिश किया  है।

अध्ययन में कहा गया है कि अधिक फसल उत्पादन की चाहत में इन चार रसायनों का बेजा इस्तेमाल किया जा रहा है जो कि विनियमन सिफारिशों के अनुकूल नहीं है।  यह अध्ययन आंध्र प्रदेश, झारखंड, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल जैसे सात राज्यों में किया गया था। जिसमें प्राथमिक और द्वितीयक आंकड़ों को शामिल करते हुए किसानों, कृषि श्रमिकों और कीटनाशक खुदरा विक्रेताओं सहित 300 उत्तरदाताओं पर कीटनाशकों के उपयोग और इसके स्वास्थ्य प्रभावों का अध्ययन किया गया।

नियमों के मुताबिक एचएचपी श्रेणी के रसायनों का इस्तेमाल विशिष्ट फसल-कीट संयोजनों के लिए किया गया है। हालांकि, अध्ययन में पाया गया कि इनका इस्तेमाल बिना सिफारिश के कई खाद्य और गैर-खाद्य फसलों के लिए किया जा रहा है।

अध्ययन के मुताबिक “क्लोरपाइरीफोस रसायन भारत में 18 फसलों के लिए स्वीकृत है, जबकि अध्ययन में पाया गया कि इसका उपयोग 23 फसलों के लिए किया गया था। फिप्रोनिल को नौ फसलों के लिए मंजूरी दी गई है, लेकिन 27 फसलों के लिए खेतों में इस्तेमाल किया गया।" इसी तरह, एट्राजिन और पैराक्वाट डाइक्लोराइड को क्रमशः एक और 11 फसलों के लिए अनुमोदित किया जाता है, लेकिन क्रमशः 19 और 23 फसलों के लिए क्षेत्र के उपयोग किया गया।"

अध्ययन के मुताबिक राज्यों के कृषि विभागों और विश्वविद्यालयों और कीटनाशक उद्योग ने भी तय सीमा से अधिक उपयोग के लिए सिफारिशें की हैं। अध्ययन के मुताबिक "गैर-अनुमोदित उपयोगों की ये उच्च संख्या कृषि उपज और पर्यावरण प्रदूषण की सुरक्षा पर गंभीर प्रश्न खड़े करती है।"

अनुमोदित उपयोगों के आधार पर कृषि उपज के अधिकतम अवशेष स्तर (एमआरएल) की निगरानी की जाती है। अध्ययन में कहा गया है कि गैर-अनुमोदित उपयोग बड़े पैमाने पर एमआरएल के लिए अनियंत्रित रहते हैं, घरेलू स्तर पर एक गंभीर चिंता खाद्य सुरक्षा की है जो कृषि वस्तुओं के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए भी खतरा है।

रिपोर्ट के लेखक ए डी दिलीप कुमार के मुताबिक "भारत में कुल पंजीकृत कीटनाशकों का लगभग 40 प्रतिशत ऐसे रसायन हैं जो पर्यावरणीय स्वास्थ्य क्षति की दृष्टि से अत्यधिक खतरनाक कीटनाशकों के रूप में वर्गीकृत होने के लायक हैं।" उन्होंने कहा कि इस अध्ययन में दर्ज कीटनाशकों के उपयोग और प्रथाओं से विनियमन और जवाबदेही में गंभीर कमी का संकेत मिलता है।

रिपोर्ट के लेखक ने कहा कि “यह भारत में कीटनाशक प्रबंधन के खराब शासन की ओर इशारा करता है जिसके परिणामस्वरूप किसानों और श्रमिकों का जोखिम, कृषि उत्पादों का दूषित होना और पर्यावरण प्रदूषण होता है। अध्ययन में भाग लेने वाले लगभग 20 प्रतिशत किसानों और 44 प्रतिशत श्रमिकों ने जोखिम और खराब स्वास्थ्य की सूचना दी।

कुमार ने आगे कहा कि भारत में कृषि-पारिस्थितिक और जलवायु परिस्थितियों को देखते हुए कीटनाशकों का सुरक्षित उपयोग कभी नहीं हो सकता है। हालांकि, कृषक समुदाय को अक्सर कीटनाशकों के अंधाधुंध, अविवेकपूर्ण और असुरक्षित उपयोग के लिए दोषी ठहराया जाता है।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि "केरल कृषि विश्वविद्यालय द्वारा हाल ही में किए गए कीटनाशक अवशेषों के विश्लेषण से पता चला है कि 19 खाद्य वस्तुओं में क्लोरपाइरीफोस के अवशेष निर्धारित अधिकतम स्तर से ऊपर हैं, सभी को कीटनाशक के उपयोग के लिए अनुशंसित नहीं के रूप में चिह्नित किया गया है।"

यह खतरनाक रसायनों के व्यापक अंधाधुंध उपयोग को इंगित करता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि केरल से कई फसल और गैर-फसल सेटिंग्स में पैराक्वाट डाइक्लोराइड के उपयोग की भी सूचना मिली है।

अध्ययन में कहा गया है कि चार कीटनाशकों के "अंतर्निहित विषाक्तता, साथ ही व्यापक असुरक्षित और गैर- अनुमोदित उपयोग" पर विचार किया जाना चाहिए और प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। संदूषण के स्तर और सीमा को समझने के लिए कृषि उत्पादों और पर्यावरणीय नमूनों में कीटनाशक अवशेषों की निगरानी की भी सिफारिश की गई थी।

अध्ययन द्वारा भारत में कृषि-पारिस्थितिकी-आधारित कृषि पद्धतियों को व्यापक रूप से अपनाने को बढ़ावा देने के लिए नीतिगत समर्थन के साथ एक आदर्श बदलाव को बढ़ावा देने की भी सिफारिश की गई थी।

कुमार ने कहा, "पैन इंडिया का मानना ​​है कि यह रिपोर्ट भारत में राज्य स्तर और राष्ट्रीय अधिकारियों को कड़े नियामक उपायों के साथ आने में मदद करेगी, जिसमें कृषक समुदायों, उपभोक्ताओं और पर्यावरण को जहरीले कृषि रसायनों के हानिकारक प्रभावों से बचाने के लिए कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगाना शामिल है।"