जूट(पौधे की देखभाल)
- जड़ और तना सड़न :- इस तरह का रोग खेत में जलभराव होने पर लगता है। इस रोग से प्रभावित होने पर पौधे की पत्तिया पीली पढ़कर सूख जाती है, और कुछ ही दिनों में पौधा सूखकर नष्ट होने लगता है। इस रोग से बचने के लिए बीजो को गोमूत्र या ट्राइकोडर्मा से उपचारित क़र खेत में लगाना होता। लेकिन जब पौधों पर रोग दिखाई दे तो उनकी जड़ो पर ट्राइकोडर्मा विरिडी का छिड़काव करे।
- लिस्ट्रोनोटस बोनियारेंसिस किट :- यह एक कीट रोग है, जिसका आक्रमण अक्सर ही जूट के पौधों पर देखने को मिलता है। यह कीट रोग पौधों की पत्तियों के ऊपरी भाग पर स्थित कोमल शाखा को खाक़र नष्ट क़र देता है। जिसके बाद पौधे का विकास पूरी तरह से रुक जाता है इस रोग से बचाव के लिए नीम के पानी या तेल का छिड़काव प्रति माह पौधों पर करे। इसके अलावा पौधों पर आरम्भ में रोग का प्रकोप दिखाई देने पर डाइकोफाल का छिड़काव करे।
जूट के पौधों की कांट – छांट जूट के पौधों की कटाई समय से क़र लेना जरूरी होता है। यदि आप समय से पहले या बाद में पौधों की कटाई करते है, तो आपको जूट की गुणवत्ता में कमी देखने को मिल सकती है। इससे पैदावार पर असर देखने को मिल सकता है। यदि आप समय से पहले जूट की कटाई क़र लेते है, तो आपको जूट के छोटे रेशे प्राप्त होंगे, और देरी से कटाई करने पर रेशा कमजोर और मोटा हो जाता है। कुछ लोग जूट की कटाई न करके उन्हें सीधा जड़ से उखाड़ लेते है।
इसके अलावा उचित समय पर काटे गए जूट के पौधों की छटाई करते है। छटाई के समय सामान लम्बाई वाले पौधों को अलग क़र बंडल तैयार क़र लेते है। इस तरह से एक समान लम्बाई वाले पौधों का बंडल तैयार हो जाता है। इन बंडलों को पत्तियों तक सूखने के लिए खेत में छोड़ देते है। जब बंडल सूख चुके होते है, तो पत्तियों को झाड़ दिया जाता है।
31/03/2023 05:38:50 p.m.