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प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

लहसुन(प्रसिद्ध किस्में और पैदावार)

एग्रीफाउंड वाइट (जी. 41 ), यमुना वाइट (जी.1 ), यमुना वाइट (जी.50), जी.51 , जी.282 ,एग्रीफाउंड पार्वती (जी.313 ) और एच.जी.1 आदि

 

देश के अलग-अलग भागों में उगाए जाने वाले लहसुन की कई किस्में हैं। कुछ महत्वपूर्ण किस्मों को यहां जानते हैं।

 

यमुना सफेद 1 (जी-1)- इस किस्म के के लहसुन के कंद 3-4 सेंटी मीटर व्यास के आकार के होते हैं। यह देखने में चांदी की तरह सफेद होता है जिसमें 20-25 उच्च गुणवत्ता वाले जवे होते हैं।

 

यमुना सफेद 2 (जी-50)- इस किस्म का लहसुन 4-5 सेंटी मीटर व्यास के आकार का सफेद और गाढ़ा क्रीम रंग का होता है। बल्ब के आकार वाले प्रत्येक कंद में 20-25 जवे होते हैं।

 

यमुना सफेद 3 (जी-282)-  इसका कंद ठोस ऊपरी छिलका सफेद व अंदर गुदा क्रीम रंग का होता है। बुआई के 5-6 माह बाद यह खुदाई और भंडारण के लिए तैयार हो जाता है।

 

यमुना सफेद 4(जी- 323) इसके कंद बड़े 5.87 सेंटी मीटर व्यास आकार के होते हैं। बल्ब के आकार में यह भी देखने में सफेद व ठोस होता है। इस किस्म के लहसुन में एक कंद में 15-20 जवे पाए जाते हैं। इस किस्म के लहसुन बुवाई के बाद लगभग साढ़े चार व पांच माह मे तैयार हो जाते हैं।

 

वीएल लहसुन 2-  इस किस्म के लहसुन के खेती (garlic farming) प्रायः पर्वतीय क्षेत्रों में होती है। इसका कंद सफेद तथा हल्का बैगनी रंग का होता है। यह 5-7 सेंटी मीटर व्यास के बल्व आकार का होता है।

 

एग्रिफाउन्ड पार्वती (जी-313)- यह भी पहाड़ी क्षेत्रों में उगने वाली लहसुन की एक उन्नत किस्म मानी जाती है। इसका शल्क कंद भी देखने में वीएल 2 की तरह होता है और इसमें 10-15 जवे पाए जाते हैं। 8-9 माह में तैयार होने वाली यह लहसुन की उन्नत किस्म मानी जाती है। प्रति हेक्टेयर 175 से 225 क्विंटल इसकी उपज संभव है। उच्च गुणवत्ता के चलते लहसुन की यह किस्म निर्यात के उपयुक्त मानी जाती है।

गोदावरी (सेलेक्शन-2)- इसका शल्क कंद 4.35 सेंटी मीटर मध्म आकार का होता है। हल्के गुलाबी और सफेद रंग के प्रत्येक कंद में 22-25 जवे पाए जाते हैं। प्रति हेक्येटर इसकी उपज 100-105 क्विंटल तक होती है।

 

भीमा पर्पल- यह उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, बिहार, पंजाब, महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में पायी जाने वाली लहसुनन की एक उन्नत प्रजाति है। इसका कंद देखने में हल्का बैगनी रंग का होता है। बुवाई से लगभग चार साढ़े चार माह बाद यह तैयार हो जाता है। इसकी पैदावार 60-70 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।

21/04/2023 05:20:08 p.m.