गेहूँ(पौधे की देखभाल)
हानिकारक कीट और रोकथाम
चेपा : यह पारदर्शी, रस चूसने वाला कीट है। यदि यह बहुत ज्यादा मात्रा में हो तो यह पत्तों के पीलेपन या उनको समय से पहले सुखा देता है। आमतौर पर यह आधी जनवरी के बाद फसल के पकने तक के समय दौरान हमला करती है।
इसकी रोकथाम के लिए कराईसोपरला प्रीडेटर्ज़, जो कि एक, सुंडियां खाने वाला कीड़ा है, का प्रयोग करना चाहिए। 5-8 हज़ार कीड़े प्रति एकड़ या 50 मि.ली. प्रति लीटर नीम के घोल का उपयोग करें। बादलवाई के दौरान सूंडी का हमला शुरू होता है। थाइमैथोक्सम@80 ग्राम या इमीडाक्लोप्रिड 40-60 मि.ली. को 100 लीटर पानी में घोल तैयार करके एक एकड़ पर छिड़काव करें।
दीमक: दीमक की तरफ से फसल के विभिन्न विभिन्न विकास के पड़ाव, बीज अंकुरन से लेकर पकने तक हमला किया जाता है। बुरी तरह ग्रसित पौधों की जड़ों को आराम से उखाड़ा जा सकता है और यह पत्ता लपेट और सूखे हुए नज़र आते हैं। यदि आधी जड़ खराब हो तो बूटा पीला पड़ जाता है।
इसकी रोकथाम के लिए एक लीटर क्लोरपाइरीफॉस 20 ई.सी. को 20 किलो मिट्टी में मिलाके एक एकड़ में बुरकाव करना चाहिए और उसके बाद हल्की सिंचाई करनी चाहिए।
बीमारियां और रोकथाम
कांगियारी : यह बीजों से होने वाली बीमारी है। हवा से इसकी लाग और फैलती है। बालियां बनने के समय कम तापमान, नमी वाले हालात इसके लिए अनुकूल होते हैं।
इस बीमारी की रोकथाम के लिए 2.5 ग्राम कार्बोक्सिल (वीटावैक्स 75 डब्लयू पी प्रति किलोग्राम बीज), 2.5 कार्बेनडाज़िम (बाविस्टिन 50 डब्लयु पी प्रति किलोग्राम बीज), 1.25 ग्राम टैबुकोनाज़ोल (रैक्सिल 2 डी एस प्रति किलोग्राम बीज) प्रयोग करना चाहिए। यदि बीजों में बीमारी की मात्रा कम या दरमियानी हो तो प्रति किलो बीज के लिए 4 ग्राम ट्राइकोडरमा विराइड प्रति किलो बीज और 1.25 ग्राम कार्बोक्सिन (विटावैक्स 75 डब्लयु पी) की आधी मात्रा का छिड़काव करना चाहिए।
सफेद धब्बे : इस बीमारी के दौरान पत्ते, खोल, तने और फूलों वाले भागों पर सफेद रंग की फंगस दिखनी शुरू हो जाती है। यह फंगस बाद में काले धब्बों का रूप ले लेती है इससे पत्तों और बाकी के भाग सूखने शुरू हो जाते हैं।
जब इस बीमारी का हमला सामने आए तो फसल पर 2 ग्राम घुलनशील सल्फर को प्रति लीटर पानी में मिलाकर या 400 ग्राम कार्बेनडाज़िम का प्रति एकड़ में छिड़काव करें। गंभीर हालातों में 2 मि.ली. प्रोपीकोनाज़ोल को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
भूरी कुंगी : गर्म तापमान (15-30°C) और नमी वाले हालात इसका कारण बनते हैं। पत्तों के भूरेपन के लक्षण की पहचान पत्तों के ऊपर लाल - भूरे रंग के अंडाकार या लंबकार दानों से होती है। जब खुली मात्रा में नमी मौजूद हो और तापमान 20°C के नजदीक हो तो यह बीमारी बहुत जल्दी बढ़ती है। यदि हालात अनुकूल हों तो इस बीमारी के दाने हर 10-14 दिनों के बाद दोबारा पैदा हो सकते हैं।
इस बीमारी की रोकथाम के लिए अलग अलग किस्म की फसलों को एक ज़मीन पर एक समय लगाने के तरीके अपनाने चाहिए। नाइट्रोजन के ज्यादा प्रयोग से परहेज़ करना चाहिए। ज़िनेब Z-78 400 ग्राम की प्रति एकड़ या प्रोपीकोनाज़ोल 2ml टिल्ट 25 इ सी का 1 लीटर पानी में घोल कर तैयार करके इसका छिड़काव करना चाहिए।
पीली धारीदार कुंगी : यह बीमारी जीवाणुओं के विकास और संचार के लिए 8-13 डिगरी सैल्सियस तापमान अनुकूल होता है और इनके बढ़ने फूलने के लिए 12-15 डिगरी सैल्सियस तापमान पानी के बिना अनुकूल होता है। इस बीमारी के कारण गेहूं की फसल की पैदावार में 5-30% तक कमी आ सकती है। इस बीमारी से बने धब्बों में पीले से संतरी पीले रंग के विषाणु होते हैं। जो आमतौर पर पत्तों पर बारीक धारियां बनाते हैं।
इस बीमारी की रोकथाम के लिए कुंगी की रोधक किस्मों का प्रयोग करें। फसली चक्र और मिश्रित फसलों की विधि अपनायें। नाइट्रोजन का ज्यादा प्रयोग ना करें। जब इस बीमारी के लक्षण दिखाई दें तो 5-10 किलोग्राम सल्फर का छिड़काव प्रति एकड़ या 2 ग्राम मैनकोजेब प्रति लीटर या 2 मि.ली. प्रोपीकोनाज़ोल (टिल्ट) 25 ई सी को 1 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए।
करनाल बंट- यह बीज और मिट्टी से होने वाली बीमारी है। इसकी शुरुआत बालियां बनने के समय होती है। बालियां बनने से लेकर उसमें दाना पड़ने तक के पड़ाव के दौरान यदि बादलवाई रहती है तो यह बीमारी और भी घातक हो सकती है। यदि उत्तरी भारत के समतल क्षेत्रों में फरवरी महीने के दौरान बारिश पड़ जाए तो इस बीमारी के कारण बहुत ज्यादा नुकसान होता है।
इस बीमारी की रोकथाम के लिए करनाल बंट की रोधक किस्मों का प्रयोग करें। और बालियां निकलने के समय 2ml प्रोपीकोनाज़ोल (टिल्ट) 25 ई सी को प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
20/04/2023 06:10:11 p.m.